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शिक्षक , अध्यापक और गुरु में क्या अंतर है

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आज शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर सभी शिक्षकों को बधाइयाँ मिल रही हैं | लेकिन एक सत्य ये भी है की हमारा समाज शिक्षक शब्द का अर्थ भी भूलता जा रहा है | हम अध्यापक और शिक्षक को एक ही समझने लगे हैं | एक अध्यापक शिक्षक हो सकता है , लेकिन ये जरूरी नहीं की हर अध्यापक शिक्षक हो | इस बात को समझने के लिए आपको  शिक्षक , अध्यापक और गुरु जैसे शब्दों का शाब्दिक अर्थ पता होना जरूरी है | हिंदी एक अनूठी भाषा है | हम कुछ शब्दों को पर्यायवाची समझते हैं , जबकि असलियत ये है की हिंदी के हर शब्द का अर्थ अलग है | कुछ शब्द एक जैसे प्रतीत होते हैं , पर उनके असली अर्थ में कुछ बारीक फर्क जरूर होता है | शिक्षक और अध्यापक भी दो ऐसे ही शब्द हैं | जो लोग गुरु को शिक्षक समझने की भूल करते हैं , उन्हें तो अपनी शब्दावली को विकसित करने की जरूरत है |
शिक्षक: शिक्षक से हम शिक्षा प्राप्त करते हैं | शिक्षक वह व्यक्ति  है जो हमें जीवन में उपयोग में आने वाली चीज़ें सिखाता है | इसमें व्यावहारिक ज्ञान से लेकर हमारे त्योहारों और रीती रिवाजों तक का ज्ञान शामिल होता है | इसीलिये किसी भी व्यक्ति का सबसे पहला शिक्षक उसके माता पिता व् सगे सम्बन्धी होते हैं | शिक्षक हमें शिक्षा देने के बदले किसी आर्थिक लाभ की अपेक्षा नहीं रखते, बल्कि सम्मान की अपेक्षा रखते हैं |
अध्यापक : अध्यापक वह होता है जो हमें अध्ययन कराये | इसका अर्थ यह है की अध्यापक हमें किताबी ज्ञान देता है | इस तरह का ज्ञान हमें कागज़ी प्रमाणपत्र अर्थात डिग्री लेने में मदद करते हैं | अध्यापक किसी ऐसे संसथान का अंग होते हैं जो हमें कागज़ी ज्ञान देने के बदले अध्यापक को वेतन प्रदान करता है | कुछ अध्यापक हमें शिक्षक की भूमिका निभाते हुए भी मिलते हैं जो उन्हें बाकी अध्यापकों से अलग व् बेहतर बनता है |
गुरु : गुरु वह होता है जो हमें सबसे उच्च कोटि का ज्ञान दे | उच्च कोटि के ज्ञान का अर्थ आध्यात्मिक ज्ञान | ये ज्ञान हमें एक साधारण मनुष्य से कुछ अधिक बना देता है | ये वह ज्ञान है जो हमें किसी शिक्षक या अध्यापक से प्राप्त नहीं हो सकता | एक अध्यापक या शिक्षक हमें अपने जन्म या धन से मिल सकते हैं , किन्तु एक गुरु को आपका ढूँढना व् अर्जित करना पड़ता | किसी गुरु का शिष्य बनने के लिए आपका अपनी पात्रता सिद्ध करनी पड़ती है | एक शिक्षक या अध्यापक जब आपको शिक्षा देता है हो उसके पीछे उसका कुछ स्वार्थ निहित होता है , लेकिन एक गुरु का ज्ञान निस्वार्थ होता है |
इन तीन के अलावा शुद्ध हिंदी में कुछ अन्य भी मिलते जुलते शब्द हैं जो अक्सर प्रयोग में लाये जाते हैं लेकिन किसी को उनका असली अर्थ नहीं पता |
आचार्य: आचार्य वह व्यक्ति होता है जो अपने द्वारा अर्जित ज्ञान को अपने आचरण / व्यव्हार का अंग बना लेता है और फिर उस ज्ञान को अपने शिष्यों को देता है | आचार्य एक ऐसी स्तिथि है जो अध्यापक से कुछ अधिक है और गुरु से कुछ कम |
प्राचार्य : प्राचार्य आचार्य से श्रेष्ठ होता है | प्राचार्य ये सुनिश्चित करता है की जिसको वह ज्ञान दे रहा है वो भी उस ज्ञान को अपने व्यव्हार का अंग बना रहा है |
आज के दौर में जहाँ किताबी ज्ञान का बोल-बाला है वहां माता पिता यह भूलते जा रहे हैं की आपके बच्चे को विद्यालय में अध्यापक अवश्य मिल जायेंगे किन्तु शिक्षक नहीं | आज के दौर में बच्चों को सर्वाधिक आवश्यकता एक अच्छे शिक्षक की होती है , जो बहुत कम माता-पिता या अध्यापक बन पाते हैं | एक अच्छे शिक्षक के आभाव में बच्चे पढ़ तो जरूर लेते हैं किन्तु वो व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते जो उन्हें एक उच्च कोटि का ज्ञानवान मनुष्य बनाये |

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