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NOTA : सही या गलत ? मर्ज़ी है आपकी !

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इस लोकसभा चुनाव में "NOTA" अर्थात "None of the Above" (इनमें से कोई नहीं) का बटन दबाने के बारे में देश में गहन विचार विमर्श चल रहा है | जनता जागरूक हो रही है , और किसी ऐसे नेता को चुनना नहीं चाहती जो गलत हो | किन्तु NOTA का बटन दबा कर क्या हम वाकई ऐसा करने में सफल होते हैं ? इस सवाल का जवाब जरा समझने वाला है |
NOTA का इस्तेमाल अक्सर वो वर्ग करता है , जो समझदार है या फिर खुद को समझदार समझता है | ऐसा इसलिए क्योंकि उस समझदार वोटर ने यह तो जांच लिया की कोई भी उम्मीदवार उस के वोट के लायक नहीं, किन्तु साथ ही उसने अपने वोट को व्यर्थ करने का भी पूरा बंदोबस्त कर लिया | NOTA को वोट करने का फायदा तब होता है जब सबसे ज्यादा वोट NOTA को मिलें , किन्तु ऐसा होने के आसार बहुत ही कम होते हैं | इसलिए अक्सर NOTA को दिया हुआ वोट , वोट न देने के बराबर ही हो जाता है |
राजनीति में सौ प्रतिशत शुद्ध व्यक्ति मिलना बहुत मुश्किल है | यदि आप ये सोचते हों की अटल बिहारी या लाल बहादुर शास्त्री जैसे व्यक्ति आपके क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे , तो आपको शायद निराशा हाथ लगे | वह जमाना और था, आज राजनीति एक career option बन चुकी है | आज के समय में जो उम्मीदवार चुनाव लड़ते हैं , उनमें से ज्यादातर वो अमीर व्यक्ति हैं, जो चुनाव लड़ने का खर्च उठा सकें और बाद में अपनी पार्टी का भी कुछ भला कर सकें | एक सौ प्रतिशत शुद्ध व्यक्ति के लिए ऐसा करना मुश्किल है | चुनाव लड़ने वाला कोई व्यक्ति 10% बेईमान है, तो कोई 20 , 30 , 50 , या 90 % बेईमान | चुनाव आपको करना है कि आप किसे संसद में भेजना चाहते हैं |
महाभारत के समय जब युद्ध होने वाला था और सभी राजघरानो को अपना पक्ष चुनना था , कौरव या पांडव | तब यादवो में चर्चा हो रही थी की किसी का भी साथ न दिया जाए (अर्थात NOTA), क्योंकि उनके अनुसार इनमें से कोई भी दूध का धुला नहीं था , एक तरफ दुर्योधन जैसा क्रोधी और अन्यायी राजा था , तो दूसरी तरफ ऐसे जूआरी पांडव जिन्होंने अपनी पत्नी तक को दांव पर लगा दिया था | उस समय श्री कृष्ण ने यह कहा था की राजनीति में पूर्णतया शुद्ध व्यक्ति मिलना मुश्किल है, हमें उसका साथ देना चाहिए जो ज्यादा न्यायोचित हो | क्योंकि यदि हम न्यायोचित व्यक्ति का साथ नहीं देंगे तो उस व्यक्ति के जीतने के अवसर बढ़ जायेगे जो न्यायोचित नहीं है |

जब एक पढ़ा लिखा व्यक्ति NOTA का बटन दबाता है , तो असली वोटर अनपढ़ और जातियों में बंटे हुए लोग ही बचते हैं | अगर पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही अपने वोट को व्यर्थ कर देगा तो ऐसे उम्मीदवार का जीतना तय है जो न्यायोचित नहीं होगा |
एक उदाहरण के माध्यम से :
4 प्रत्याशी मैदान में हैं | 22% जनता हर प्रत्याशी के साथ है, अर्थात कुल 88% | बचे हुए 12% व्यक्ति NOTA को चुनते हैं | इस सूरत में हो सकता है की चुने जाने वाला व्यक्ति पूर्णतया भ्रष्ट हो, क्योंकि ऐसे लोग ही चुनाव में ज्यादा खर्च कर पाते हैं | इस सूरत में NOTA को वोट करने वाले समझदार व्यक्ति किसी काम के न रहे | यदि यही 12% समझदार व्यक्ति किसी एक न्यायोचित व्यक्ति को वोट करते तो वही जीतता | भले ही वह व्यक्ति भी थोडा सा गलत होता, किन्तु एक पूर्ण भ्रष्ट से तो सही होता |
यदि आपके निर्वाचन क्षेत्र से कोई बढ़िया नेता चुनाव लड़ रहा है तो उसे वोट करें, किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो उस उम्मीदवार/पार्टी को चुने जो सबसे अधिक न्यायोचित हो | भले ही आपको यह लग रहा हो कि ये भी थोडा तो भ्रष्ट है , फिर भी उसे ही वोट करें , क्योंकि आपका NOTA को दिया हुआ वोट उस नेता को जिताने में मदद करेगा जो पूर्ण भ्रष्ट होगा |

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