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आरक्षण - सही या ग़लत

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आज भारतीय समाज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहाँ सब भारतीय होकर भी अलग अलग धर्म और जातियों में बटे हुए हैं | बटे हुए ये पहले भी थे लेकिन आज-कल चल रही आरक्षण की आग ने इन धर्म और जातियों को और दूर - दूर कर दिया है | जिस आरक्षण की शुरुआत सभी भारतीयों को एक स्तर पर लाने के लिए की गयी थी, वही आरक्षण अब आपसी द्वेष का कारण बन गया है |

आज से ५० या १०० वर्ष पहले जो स्तिथि थी, अब वो नहीं है. आज एक ब्राह्मण सेना में काम कर रहा है, तो कहीं एक क्षत्रिय शिक्षक का कार्यभार संभाल रहा है | अब जातिगत आधार पर काम का बटवारा न के बराबर रह गया है | फिलहाल चल रहे आरक्षण से एक ही परिवार के सभी व्यक्ति सरकारी नौकरी पर हैं, तो दूसरी ओर उसी जाती के परिवार से कोई भी सरकारी नौकरी पर नहीं है |

जिस प्रकार प्रधानमंत्री जी ने गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील करी है, उसी प्रकार सक्षम परिवारों से आरक्षण छोड़ने की अपील भी करनी चाहिए | आज एक MP या MLA का बच्चा अगर आरक्षण के आधार पर कॉलेज में एडमिशन लेता है तो उसे रोकने के लिए कोई कानून नहीं है |

कुछ निम्न जाती के लोगों का यह कहना है की हमारे पूर्वजों के ऊपर उच्च जाती वालों के पूर्वजों ने बहुत जुल्म ढाए हैं, इसलिए अब आरक्षण से उसका हिसाब बराबर हो रहा है और न्याय मिल रहा है | जो लोग ये बात कहते हैं उन्हें ये समझना चाहिए की बाबा के कसूर की सजा पोते को नहीं मिलती | उन्हें ये भी समझना चाहिए की न्याय का मतलब बदला नहीं होता है | आरक्षण केवल इसलिए था जिससे जातिगत भेदभाव समाप्त हो सके, और सभी जाती के लोग एक साथ उठ-बैठ सकें | आज हमारा समाज उसी पथ पर अग्रसर है | लेकिन अब हम उस स्तर पर पहुच चुके हैं जहाँ जाती के आधार पर आरक्षण को यदि ख़त्म नहीं किया गया तो ये आरक्षण ही आपसी भेदभाव का कारण बन जाएगा |

आज एक निम्न जाती का व्यक्ति यदि बिना आरक्षण का फायदा उठाये सरकारी नौकरी पा लेता है, तो उसी के उच्च जाती के सहकर्मी ये समझते हैं की ये जरूर आरक्षण के बल बूते पे यहाँ तक पंहुचा है | यदि एक काबिल व्यक्ति को ऐसी बात सुनने को मिले तो इस से बुरा और क्या होगा |
वही दूसरी ओर उच्च जाती के काबिल व्यक्ति सरकारी नौकरी से दूर हट रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है की वहां उसकी काबलियत आरक्षण के आगे दम न तोड़ दे |
आज हालत ये है की असली काबिल व्यक्ति (चाहे वो किसी भी जाती का हो), प्राइवेट मल्टी नेशनल कम्पनीज के तरफ भाग रहे हैं और विदेशों में जा कर काम कर रहे हैं.

इस लिए जातिगत आरक्षण ख़त्म होना चाहिए | इसके ख़त्म होने से जातिगत भेदभाव तो मिटेगा ही , साथ ही देश की काबलियत भी देश के ही काम आएगी |

अब हमारे समाज को जाती के आधार पर आरक्षण की जरूरत नहीं है, बल्कि वित्तीय आधार पर आरक्षण की जरूरत है | आज हालत ये है की अमीर और अमीर होता जा रहा है , जबकि गरीब वही का वही है | अमीर और गरीब दुनिया में सदा से है और सदा रहेंगे , लेकिन यदि एक काबिल गरीब व्यक्ति का स्तर यदि आरक्षण की वजह से ऊपर उठता है तो देश प्रगति करेगा |

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