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धार्मिक दंगों का असली कारण !

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सभी धर्म शांति की शिक्षा देते हैं, फिर भी आज तक दुनिया में सबसे ज्यादा झगडे धर्म के नाम पर ही हुए हैं | ऐसा क्या है सभी धर्मों की शिक्षा में जो व्यक्ति धर्म के नाम पर एक-दूसरे की गर्दन काटने से भी नहीं कतराता | 

धार्मिक श्रेष्ठता 

सभी धर्मों के लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ समझते हैं, जो काफी हद तक उचित भी है | लेकिन यह श्रेष्ठता का भाव जब तक गर्व की सीमा तक है, तो सही है | किन्तु यदि यह श्रेष्ठता का भाव घमंड बन जाए तो बात बिगड़ जाती है | अपने धर्म पर गर्व यदि सीमा से अधिक हो जाए तो घमंड बन जाता है, जो दूसरे के धर्म को निम्न सिद्ध करना चाहता है | यह घमंड अपने भगवान् को सच्चा मानता है, और दूसरे के भगवान् को झूठ |

धर्मान्तरण 

दूसरे धर्म के लोगों को अपने धर्म में शामिल कराना "धर्मान्तरण" कहलाता है | मुस्लिम और इसाई धर्म में धर्मान्तरण को अच्छा व् सही माना जाता है , किन्तु हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं है | यहीं से धार्मिक श्रेष्ठता सिद्ध करने की होड़ शुरू होती है | आप अपने धर्म को उच्च और दूसरे के धर्म को तुच्छ साबित करके ही किसी व्यक्ति को अपने धर्म में मिला सकते हैं | यहीं से धार्मिक दुर्भावना की शरुआत होती है | 

धर्म का व्यापार व् शिक्षा की कमी 

यूँ तो धर्म का व्यापार सभी धर्मों में है, किसी में कम तो किसी में ज्यादा | अच्छी शिक्षा हमें इस धर्म के व्यापार से बचाती है | किन्तु कुछ धर्मों में आधुनिक शिक्षा का विरोध इस कदर किया जाता है की वे लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय अपने ही धार्मिक संस्थानों में भेजते हैं, जहाँ उन्हें वही शिक्षा मिलती है जिससे उनका धर्म का व्यापार बढे | इस से पहला नुक्सान तो यह होता है की उस धर्म विशेष के बच्चे आधुनिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, उनके अन्दर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव रह जाता है | ऐसा होने के कारण वे बच्चे बड़े होने पर भी पढ़े लिखे समाज का अंग नहीं बन पाते और न ही ढंग की नौकरियां कर पाते हैं | दूसरा नुक्सान यह होता है की वे अपने धार्मिक शिक्षकों के बहकावे में आ कर यह समझते हैं की सरकारें उनके धर्म विशेष के लिए ही कुछ नहीं करती और उनका शोषण करती हैं | जबकि सच्चाई यह होती है की खुद उनके ही तथाकथित धर्मगुरु उन्हें शिक्षा व् उन्नत समाज से दूर रखते हैं | 

धार्मिक कट्टरता 

धार्मिक कट्टरता वह भाव है, जिसमें आप अपने धर्म के लिए दूसरे के व्यक्ति को मारने से भी नहीं कतराते | किन्तु यह कट्टरता आती कहाँ से है | यह आती है शिक्षा की कमी, व् कट्टर धार्मिक शिक्षा से | वह धार्मिक शिक्षा जो धर्म के नाम पर वह कानून पढ़ाती है जो चोरों के हाथ काटने, व् इश्वर की निंदा करने वाले का सर काटने की बात करती है | जब आप एक 5-7 साल के बच्चे को इस्लामिक कानून की पढाई कराना शुरू कर देते हैं, तो वह बड़ा होकर उसे ही सच्चा क़ानून मानना शुरू कर देता है | एक शिक्षक की सोच का उसके शिष्यों की सोच को विकसित करने में बड़ा योगदान होता है , यदि शिक्षक ही धार्मिक कट्टरता से ग्रस्त होगा तो कट्टर शिष्यों की एक फ़ौज तैयार होना स्वाभाविक है | 

हो सकता है की कुछ लोग मेरी इस राय से सहमत न हों, किन्तु हमारे धार्मिक रीति रिवाज़ व् हमारा खान-पान भी  हमें कट्टरता सिखाता है | शुद्ध शाकाहारी व्यक्ति के मुकाबले एक माँसाहारी व्यक्ति के कट्टर होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं | जो व्यक्ति अपने सामने जीवों को कटते हुए देखता है, या खुद काटता है, उसका मन व् मष्तिष्क जरूरत पड़ने पर अपने दुश्मन पर हथियार चलाने से नहीं कतरायेगा | धर्म के नाम पर दी जाने वाली कुर्बानियों में बकरे व् भैंस जैसे बड़े जानवरों को परिवार के छोटे बच्चों के सामने इसलिए काटा जाता है जिससे उनके दिल मज़बूत किये जा सकें |

शिक्षा की कमी, धार्मिक कानून की तालीम, मांसाहार व् कुर्बानियां देने वाले त्यौहार, कुल मिलाकर एक ऐसा कट्टर इंसान तैयार करते हैं, जो अपने धर्म के लिए मरने-मारने को ही अपने जीवन का उद्देश्य समझता है | अपनी धार्मिक कट्टरता को ही वे अपनी ताकत समझते हैं | ऐसे लोगों को यह समझाना काफी कठिन होता है की "कट्टरता" और "साहसी" होना दो अलग-अलग बातें हैं | छोटे बच्चों के सामने जानवरों की क़ुरबानी दे कर आप उन्हें निर्दयी व् कट्टर तो अवश्य बना सकते हैं किन्तु साहसी नहीं | 

धर्म की राजनीति 

धर्म की राजनीति इन सब मुद्दों पर आग में घी का काम करती है | वोट के लिए नेतागण लोगों को एक दूसरे के खून का प्यासा बनाने में शायद ही कोई कसर छोड़ते हैं | धर्म की राजनीति से वोटों का ध्रुवीकरण सबसे ज्यादा अच्छे तरीके से होता है | 

धार्मिक दंगों से बचने का सटीक उपाय 

  • धर्मान्तरण पर रोक : यदि यह उपाय अपना लिया जाए तो दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने का कोई कारण ही नहीं रहेगा | सारे झगड़ों की वजह ही यही है | अपने धर्म को उच्च साबित करने का जब कोई कारण ही नहीं रहेगा तो दूसरे के धर्म को तुच्छ कहने का भी कोई कारण न रहेगा |  
  • मदरसों पर कुछ पाबंदियां : मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा पर प्रतिबंद तो नहीं लगाया जा सकता क्योंकि भारत एक लोकतान्त्रिक देश है, किन्तु यह तो अवश्य किया जा सकता है कि धार्मिक तालीम की उम्र 15 साल निर्धारित कर दी जाए | इस से बच्चों को आधुनिक शिक्षा लेने का अवसर भी मिलगा और उनके अन्दर एक समझ भी बढ़ेगी जो उन्हें सही-गलत का निर्धारण करने व् प्रश्न पूछने का साहस देगी |
  • राजनीतिज्ञों की धार्मिक चर्चाओं पर रोक : अगर धार्मिक मुद्दों पर राजनीतिज्ञों को बोलने की अनुमति न होगी, तो धर्म की राजनीति अपने आप ही बंद हो जायेगी | धार्मिक मुद्दों को इस्तेमाल कर के राजनीतिक दल ही आग लगाते हैं, व् धर्म विशेष का वोट पाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं | धर्म हमारे व्यक्तिगत जीवन का अंग है, अतः अपने घर में कोई चाहे कैसे भी धर्म का पालन करे किन्तु सामाजिक जीवन में नेताओं को घार्मिक चर्चाओं से बचना चाहिए |      

 

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