किशोरों को अक्सर आवेगी, लापरवाह और रोमांच खोजने वाला कहा जाता है। माता-पिता को उनकी आदतों जैसे तेज़ गाड़ी चलाना, असुरक्षित यौन संबंध, नशे का प्रयोग करना या सोशल मीडिया की चुनौतियों में भाग लेने की आदतों को लेकर चिंता रहती है। लेकिन असली सवाल यह है: क्या यह सब उनके दिमाग की बनावट के कारण होता है या फिर केवल साथियों के दबाव से? brahmagyaan.in पर हम मस्तिष्क विज्ञान और मनोविज्ञान के आधार पर इस विषय को गहराई से समझेंगे। सच यह है कि दोनों कारण मिलकर किशोरों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
किशोर मस्तिष्क: निर्माण की प्रक्रिया में
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किशोरावस्था में दिमाग पूरी तरह परिपक्व नहीं होता। दिमाग का विकास लगभग 25 वर्ष की आयु तक चलता है। प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स, जो समझदारी, योजना बनाने और आवेग पर नियंत्रण करने में मदद करता है, सबसे आख़िर में विकसित होता है।
इसके विपरीत, भावनाओं और आनंद से जुड़ा लिम्बिक तंत्र पहले ही विकसित हो जाता है। यही कारण है कि किशोर अक्सर तुरंत मिलने वाले सुख या आनंद को लंबे समय के परिणामों से अधिक महत्व देते हैं।
“किशोरावस्था वह समय है जब दिमाग का ब्रेक (प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स) पूरी तरह से काम नहीं करता, लेकिन एक्सेलेरेटर (लिम्बिक तंत्र) बहुत मज़बूत होता है। यही प्राकृतिक रूप से जोखिम लेने की प्रवृत्ति पैदा करता है।” — विकासात्मक वैज्ञानिक
डोपामिन: आनंद का रसायन
डोपामिन एक रसायन है जो प्रेरणा, आनंद और दिमाग के पुरस्कार तंत्र से जुड़ा होता है। किशोरावस्था में डोपामिन का स्तर अधिक बदलता है और दिमाग इसकी संवेदनशीलता भी बढ़ा देता है। इसी कारण जोखिमपूर्ण या नई चीज़ें आज़माना किशोरों को वयस्कों की तुलना में अधिक रोमांचक लगता है।
दोस्तों का दबाव (Peer Pressure)
जैविक कारण तो आधार तैयार करते हैं, लेकिन दोस्तों का दबाव इसे और बढ़ा देता है। शोध में पाया गया है कि जब किशोर जानते हैं कि उनके दोस्त उन्हें देख रहे हैं, तो वे अधिक जोखिम लेते हैं। दोस्तों की मौजूदगी उनके दिमाग के पुरस्कार केंद्रों को और सक्रिय कर देती है।
“सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि दोस्तों की मौजूदगी ही किशोरों को जोखिम उठाना और भी आकर्षक बना देती है।” — सामाजिक मस्तिष्क विज्ञान विशेषज्ञ
यही प्रभाव वयस्कों पर उतना नहीं होता। यह दिखाता है कि किशोरों का दिमाग सामाजिक स्वीकृति के लिए विशेष रूप से संवेदनशील होता है।
क्या सभी किशोर लापरवाह होते हैं?
यह मानना सही नहीं है कि हर किशोर लापरवाह होता है। सच यह है कि यही उम्र सीखने, रचनात्मकता और नए अनुभवों का भी समय है। जोखिम लेना हमेशा नकारात्मक नहीं होता। सकारात्मक जोखिम जैसे किसी प्रतियोगिता में भाग लेना, नया हुनर सीखना या लोगों के सामने बोलना किशोरों में आत्मविश्वास और कौशल दोनों बढ़ाता है।
निर्णय लेने में दिमाग की भूमिका
प्रिफ्रंटल कॉर्टेक्स के अधूरा विकसित होने के कारण किशोर अक्सर तर्क से समझने के बावजूद जोखिम उठाते हैं। उदाहरण के लिए, उन्हें पता होता है कि तेज़ गति से गाड़ी चलाना खतरनाक है, लेकिन दोस्तों के उत्साह बढ़ाने पर उन्हें उसका रोमांच अधिक आकर्षक लगता है।
जोखिम और लापरवाही में अंतर
जोखिम का अर्थ है अनिश्चित परिणाम जिनमें कुछ लाभ मिलने की संभावना होती है। जबकि लापरवाही में परिणामों की पूरी तरह अनदेखी की जाती है। किशोर अक्सर इन दोनों के बीच की महीन रेखा पर चलते हैं।
जैसे नया व्यापार शुरू करना एक जोखिम है, लेकिन नशे की हालत में गाड़ी चलाना लापरवाही है।
सकारात्मक जोखिम की अहमियत
किशोरों की यह प्रवृत्ति सिर्फ नकारात्मक रूप में नहीं देखनी चाहिए। विकास के दृष्टिकोण से यही उम्र खोज, नए विचार और बदलाव की होती है। समाज में हमेशा युवा ही नए विचारों और सुधारों का नेतृत्व करते आए हैं।
“किशोरावस्था केवल जोखिम का समय नहीं है, बल्कि अवसरों का भी समय है। यही प्रवृत्ति रचनात्मकता और साहस को जन्म देती है।” — किशोर मनोवैज्ञानिक
हार्मोन और भावनाएँ
यौवनावस्था में हार्मोन जैसे टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन भी मूड, गुस्सा और आकर्षण को प्रभावित करते हैं। ये बदलाव सामाजिक स्वीकृति और दोस्तों के असर को और भी मज़बूत बना देते हैं।
नींद और किशोरों का जोखिम
किशोरों की नींद भी उनके व्यवहार पर असर डालती है। उनका प्राकृतिक जैविक चक्र उन्हें देर रात तक जागने और अधिक सोने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन विद्यालय के समय के कारण उनकी नींद अधूरी रह जाती है। नींद की कमी आवेग पर नियंत्रण को कम करती है और जोखिम लेने की प्रवृत्ति बढ़ा देती है। इस विषय पर अधिक जानने के लिए पढ़ें किशोर इतनी नींद क्यों लेते हैं?.
भविष्य पर असर
किशोरावस्था की आदतें जीवनभर असर डाल सकती हैं। धूम्रपान, अस्वस्थ भोजन या अधिक चीनी का सेवन मध्यम आयु में मधुमेह और हृदय रोग का जोखिम बढ़ाता है। विस्तार से पढ़ें क्या किशोरावस्था की आदतें आगे चलकर मधुमेह बन सकती हैं?.
मानसिक स्वास्थ्य भी इसी उम्र में सबसे अधिक संवेदनशील होता है। तनाव, चिंता और अवसाद अक्सर किशोरावस्था में ही दिखाई देते हैं। इस पर विस्तार से पढ़ें क्या हम किशोर मानसिक स्वास्थ्य महामारी की ओर बढ़ रहे हैं?.
माता-पिता की भूमिका
माता-पिता अक्सर सोचते हैं कि उनके बच्चे सलाह क्यों नहीं मानते। लेकिन जब वे समझते हैं कि किशोरावस्था में दिमाग एक विशेष विकास के दौर से गुजर रहा है, तो वे अधिक धैर्य और सहानुभूति दिखा सकते हैं।
माता-पिता को चाहिए कि वे सीमाएँ तय करें, सकारात्मक जोखिम लेने के अवसर दें और सुरक्षित माहौल बनाएँ। पूरी तरह रोकने की बजाय सही दिशा में मार्गदर्शन देना अधिक प्रभावी है।
आधुनिक समय के नए जोखिम
आज के किशोरों को साइबर धमकी, सोशल मीडिया की चुनौतियों और ऑनलाइन दबाव जैसे नए जोखिमों का सामना करना पड़ता है। डिजिटल दुनिया में दोस्तों का असर और भी ज़्यादा हो जाता है।
इसलिए ज़रूरी है कि माता-पिता और समाज दोनों ऑनलाइन और ऑफलाइन वातावरण में मार्गदर्शन करें।
निष्कर्ष: दिमाग की बनावट + दोस्तों का असर
तो सवाल का जवाब यह है कि किशोर जैविक रूप से जोखिम लेने की प्रवृत्ति रखते हैं और दोस्तों का दबाव इसे और बढ़ा देता है। उनका दिमाग पुरस्कार को अधिक महत्व देता है और सामाजिक स्वीकृति उनके फैसलों को दिशा देती है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किशोरावस्था केवल समस्या है। यदि सही दिशा दी जाए तो यही प्रवृत्ति रचनात्मकता, आत्मविश्वास और नवाचार में बदल सकती है।
brahmagyaan.in का मानना है कि किशोरावस्था को केवल लापरवाही का समय मानने की बजाय इसे अवसरों का समय समझना चाहिए। सही मार्गदर्शन पाकर यही किशोर भविष्य के नेता और नवाचार करने वाले बन सकते हैं।
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