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बलात्कार का विरोधी हमारा बॉलीवुड और मीडिया ?

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आपने अक्सर देखा होगा की जब कोई बलात्कार की खबर नेशनल टीवी की खबर बनती है, जैसा की निर्भया काण्ड में हुआ था , तब बॉलीवुड हस्तियाँ महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा की बात करने के लिए न्यूज़ चैनल्स पर बढ़ चढ़ कर बयान देते हैं. न्यूज़ चैनल्स के रिपोर्टर्स भी उन की ही बातें सारे दिन टीवी पर दिखाते हैं | आखिर सच्चाई क्या है ? क्या वाकई इन कलाकारों को कोई फर्क पड़ता है इन घटनाओं से ? या ये भी सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट होता है | क्या न्यूज़ चैनल्स इन पीड़ित लड़कियों के साथ इन्साफ करना चाहते हैं |

बलात्कार का विरोधी हमारा बॉलीवुड ?

वो कहते हैं "We are gathering for a good cause", काहे का गुड कॉज ! वो महिलाओं के सम्मान की बात करते हैं और अपनी फिल्मों में नग्नता की सारी हदें पार कर देते हैं, और कोई पूछे तो कह देते हैं की ये तो स्टोरी की डिमांड थी ! Its a form of Art ! कोई इनसे पूछे की क्या आर्ट सिर्फ कपडे उतार के ही दिखाई जा सकती है क्या ?
क्या आज तक बलात्कार का विरोध करने वाली किसी हिरोइन ने ये कहा है की वो अबसे कोई हॉट सीन नहीं करेगी |
कहने को तो s-e-x भी कोई बुरी चीज़ नहीं है , यदि पति पत्नी के बीच हो , लेकिन हर चीज़ का एक सही टाइम होता है, सही जगह होती है | लेकिन बॉलीवुड ने स्त्री की मर्यादा को तार तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है | बेडरूम में भी कैमरा घुसा दिया है | बलात्कार की घटना का चित्रण भी इतनी गहराई से होता है की ..... अब क्या बोलूं !
बॉलीवुड के एक्टर्स, डायरेक्टर्स अक्सर ये भी कहते हैं की वो सिर्फ वो दिखाते हैं जो दुनिया देखना चाहती है | कोई उन्हें ये जवाब क्यों नहीं देता की ये तर्क तो ब्लू फिल्म बनाने वाले भी दे सकते हैं |
अगर कोई ये बात बॉलीवुड वालों से कह दे की बलात्कार की बढती घटनाओं के पीछे आपका भी योगदान  है तो इनका गुस्सा भी देखने लायक होगा | उनका जवाब कुछ ऐसा होगा की बुराई तो देखने वाले की आँखों में है , वो तो सिर्फ सुन्दरता दिखाते हैं | ये देखने वाले की मानसिकता पर निर्भर करता है की वो उनकी मूवीज देख के क्या सीखे | बात सही है |

बलात्कार का विरोधी हमारा मीडिया ?

अब थोडा सा मीडिया की भी बात कर लें | चाहे न्यूज़ चैनल हों या प्रिंट मीडिया , बलात्कार की खबरें धड्दले से प्रकाशित होती हैं | जैसे की लोग टीवी देखे ही इसलिए हों की कोई बलात्कार खबर देखें | और तो और ऐसी घटनाओं का नाट्य रूपांतरण भी प्रस्तुत किया जाता है, की समझने में कोई कमी न रह जाए की क्या हुआ और कैसे हुआ | मीडिया ट्रायल भी होता है, जैसे के यही इन्साफ हो जाएगा | पीड़ित के सगे सम्बन्धियों को इस विश्वास के साथ बात करने के लिए बुलाया जाता है की इससे आपको अपनी आवाज़ उठाने में मदद मिलेगी | लेकिन अक्सर ये होता है की मीडिया वाले अपने टीआरपी का उल्लू सीधा करने में लगे होते हैं | उन्हें दर्शकों और पीड़ित के परिवार की भावनाओं का फायदा उठा कर अपने विज्ञापन भी साथ में दिखाने होते हैं | घोड़ा घास से दोस्ती तो नहीं कर सकता | कभी सुना है की इन्ही मीडिया वालों ने किसी पीड़ित का कोर्ट केस लड़ने का खर्चा उठाया हो | मेरी जानकरी में तो ऐसा कभी नहीं हुआ | अगर हुआ होता तो न्यूज़ चैनल इस चीज़ का भी गीत गा देते |
कई न्यूज़ चैनल्स एक जिम्मेदार मीडिया की भूमिका भी निभाते हैं और बड़े सभ्य तरीके से चीज़ों को सुधारने के बारे में भी चर्चा करते हैं (बिना पीड़ित के परिवार को बुलाये)| बलात्कार के मामले में पीड़ित के परिवार को न बुला कर , उन लोगों के चेहरे बार बार टीवी पर दिखाने चाहिए जो अपने चेरों पर काले कपडे ढक कर पुलिस कस्टडी में ले जाए जाते हैं | मीडिया वालों को असली गुनेहगार के परिवार से बात करनी चाहिए, और उसे टीवी पर दिखाना चाहिए |
कई न्यूज़ चैनल्स दस मिनट में सौ खबरें दिखाते हैं , और उनमें ज्यादातर खबरें दुर्घटनाओं या बलात्कारों की ही होती हैं | ऐसा महसूस होता है की हम दुनिया में नहीं, नरक में रह रहे हैं | नेगेटिव चीज़ें दिखाने से नेगेटिव चीज़ ही बढती है | आप पॉजिटिव खबरें दिखा के ही समाज से नेगेटिव चीज़ें खत्म कर सकते हैं | लेकिन ये भी सच्चाइ है की सिर्फ पॉजिटिव चीज़ें दिखाने लगे तो न्यूज़ देखेगा कौन ?| यही तो खासियत है नेगेटिव चीजों में , की वे हमें अपनी तरफ खीचती हैं , और इसी का न्यूज़ चैनल्स फायदा उठाते हैं |
इसका इलाज़ यही है की सारे दिन न्यूज़ चैनल्स पर चिपकने के बजाये कोई एक ऐसा न्यूज़ प्रग्राम पकड़ लें जिसमें आपको सही तरीके से न्यूज़ मिलती हो और आप अपने आस पास और अपने देश में हो रही गतिविधियों को जान सकते हों | और भी चैनल्स हैं टीवी पर ! ज्ञान वर्धन के लिए डिस्कवरी जैसे चैनल्स देखें |

क्या स्त्री का शरीर केवल मार्केटिंग के लिए है ?

आज के दौर में स्त्री की नग्नता , मार्किट में सामान को बचने का एक तरीका हो गया है | वो सामान चाहे एक मूवी हो , एक चॉकलेट हो , एक बिस्तर का गद्दा हो, एक मोबाइल फ़ोन हो | जब तक एक कम कपडे पहने हुए लड़की उसका उपयोग करके नहीं दिखायगी , तब तक वो चीज़ बाज़ार में बिकेगी नहीं | और तो और दिवाली जैसे त्यौहार के लिए एक पटाके का पैकेट लेने लगो , तो उस के ऊपर भी एक ऐसी ही कम कपड़ों वाली लड़की की फोटो जरूर छपी होगी |
पुराने दौर में एक कंडोम का विज्ञापन भी बस एक छोटो सा गाना होता था "प्यार हुआ इकरार हुआ ...प्यार से फिर क्यों डरता है दिल " | समझने वाले उस से ही सब समझ जाते थे | अब पता नहीं लागों की समझ कमज़ोर हो गयी है या समझाने वाले ज्यादा समझदार और कम्पटीशन के सताए हो गए हैं, की ऐसा विज्ञापन बनाते हैं की बच्चे भी सब समझ जायें , और बड़े टीवी का रिमोट ढूँढ़ते रह जायें |
आज के दौर में एक तरफ स्त्री पुरुष के बराबर ही नहीं, बल्कि उस से ऊपर भी निकल रही है | वहीँ दूसरी तरफ खुद को मॉडल्स कहने वाली स्त्री अपने शरीर का मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल होने दे रही है | यदि कोई चाहे तो बिना नग्नता दिखाए भी सुन्दरता दिखा सकता है | यदि एक स्त्री ये द्रढ़ निश्चय कर ले की अपने शरीर का इस्तेमाल नहीं होने देगी, तो कोई उसे ये करने को विवश नहीं कर सकता | रही बात पैसे कमाने की, तो कोई दूसरा काम भी किया जा सकता है| लेकिन यदि आप पब्लिसिटी पाना ही अपने जीवन का लक्ष्य मानते हैं तो एक आदर्श कलाकार की तरह भी पा सकती हैं |
आज की दुनिया में कोई इंसान मर्यादा पुरिशोत्तम नहीं है | हर आदमी के अन्दर एक हवस दबी हुई है , जो कुदरती चीज़ है | अगर ये न हो तो दुनिया ही न हो | लेकिन फिल्में देख के कुछ इंसानों की ये हवस कम उम्र और अज्ञानता व् संस्कारों के आभाव में उन्हें गलत दिशा में ले जाती है | ऐसे इंसान औरतों को उन्ही हिरोइन्स के कपड़ों में देखना चाहते हैं जिन्हें देख कर वो पिक्चर हॉल्स में हूटिंग करते हैं | ऐसे आदमी असल ज़िन्दगी में भी शिकार की तलाश ही करते हैं |
आज के दौर में बढती हुई बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए केवल सरकार को नहीं बल्कि हमारे बॉलीवुड , मीडिया और खुद स्त्रियों को सोचने की जरूरत है | सही पढाई और संस्कार लड़कों के लिए भी उतने ही जरूरी हैं जितने लड़कियों के लिए |
नोट: हम किसी तरह के कपड़ों के विरोधी नहीं है | न ही हम स्त्रियों पर कोई पाबंदी लगाने के पक्ष में हैं | लेकिन जैसे खाने पीने की और स्वछता की सही आदतें हमें बिमारियों से बचा सकती हैं , वैसे ही जगह के हिसाब से सही पहनावा पहनने से हम सामाजिक बुराइयों से भी बच सकते हैं | बीमारी का इलाज करने से अच्छा यही है की हम बीमारी होने ही न दें |

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