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शिव सूत्र : 1 - 3 योनिवर्गः कलाशरीरम्

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योनिवर्गः कलाशरीरम्  [शिव सूत्र : 1 - 3]

यह शिव सूत्र के प्रथम अध्याय का तीसरा सूत्र है |
शाब्दिक अर्थ : योनि अर्थात वो स्रोत जिससे हम उपजे हैं | वर्ग अर्थात समाज या प्रकृति का एक हिस्सा | कला अर्थात कर्ता का भाव | शरीर अर्थात ये देह | हमारे मन में पल रहा करता का भाव ही हमें अलग अलग प्रकार के शरीर और योनियों में भेजता है |
भावार्थ : यह सूत्र बहुत गहरा है | अक्सर लोग वर्ग शब्द आने पर समाजिक वर्गों से आगे नहीं बढ़ पाते | किन्तु शिव की द्रष्टि बहुत गहरी है | योनी का अर्थ प्रकृति या स्त्री भी होता है | योनी शब्द का उपयोग केवल मनुष्यों के लिए नहीं बल्कि किसी भी जीव के लिए हो सकता है | कलाशरीरम्  अर्थात "हमारे मन का करता का भाव" ही हमें शरीर की प्राप्ति कराता है | हमारा मन जिस चीज़ को पाने को लालायित रहता है , हम उसी के अनुरूप शरीर पाने की तरफ अग्रसर हो जाते हैं | प्रकृति तो योनी है, वह गर्भ है ,  हमारी इच्छा (हमारे करता भाव ) के अनुरूप हमें शरीर प्रदान करती है |
इस सूत्र को यदि हम गहराई से समझें तो हम अपने दुखों के लिए कभी किसी दूसरे को दोषी नहीं बनायेंगे | हम आज जो भी हैं वो अपने कर्मों के कारण ही हैं | कुछ व्यक्ति ये समझते हैं की उन्होंने कभी किसी का बुरा नहीं किया , फिर उन्हें दुःख क्यों प्राप्त हो रहा है | यही एक साधारण व्यक्ति की सबसे बड़ी भूल होती है | इंसान अन्याय कर सकता है , किन्तु प्रकृति नहीं | हमारे मन में उत्पन्न हर विचार एक बीज है , जो अंकुरित भी होता है और वृक्ष भी बनता है | ये बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर होता है | हमारे कृत्य चाहे अच्छे हों या बुरे किन्तु उनके पीछे हमारे मन का भाव (करता का भाव ) ही हमारा असली कर्म होता है | एक सत्य वचन भी द्वेष वाले मनोभाव से कहा जा सकता है , फिर ये सोचना की आपने सदा सत्य बोला है या सत्य का साथ दिया है , उससे कोई फर्क नहीं पड़ता | इसी प्रकार एक असत्य वचन बोलने के पीछे क्या भाव है , वह हमारे कर्मफल का कारण बनता है |
हमारा मनोभाव ही हमारे शरीर का निर्माण करता है | इस जन्म में हमारे भाव हमारे शरीर के अच्छे व् बुरे विकारों का निर्माण करते हैं | इसे प्रकार जीवन के अंत के हमारे भाव हमारे भावी गर्भ और प्रवृति निर्धारित करते हैं | एक व्यक्ति जो सदा उड़ने का विचार मन में रखता है , वह एक पक्षी के गर्भ से नया जन्म ले सकता है | वह व्यक्ति जो सदा कामवासना से ग्रसित रहता है, वह किसी ऐसी योनी में नया जन्म ले सकता है जहाँ ऐसी वासना की पूर्ती आसानी से हो सके |
"योनिवर्गः कलाशरीरम्" का अर्थ एक पंक्ति में ये समझा जा सकता है की "हमारा शरीर (योनी) हमारे मनोभावों द्वारा निर्धारित होता है " |

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